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विशेष – हिंदी की अनदेखी पड़ी भारी: उत्तराखंड बोर्ड परीक्षा में हजारों छात्र फेल, शिक्षा प्रणाली पर उठे सवाल

– ओम जोशी | The Mountain Stories

“हिंदी हमारी पहचान है” — यह बात हम दशकों से कहते आ रहे हैं, मगर यह पहचान अब छात्रों के लिए बोझ बनती जा रही है। उत्तराखंड बोर्ड परीक्षा 2025 के नतीजे एक चौंकाने वाली सच्चाई सामने लाए हैं: हाईस्कूल और इंटरमीडिएट दोनों में हिंदी विषय को हल्के में लेने की कीमत हजारों छात्रों को फेल होकर चुकानी पड़ी है।

इस वर्ष बोर्ड परीक्षा में कुल 6431 विद्यार्थी हिंदी विषय में असफल हुए हैं, जिनमें हाईस्कूल के 2387 छात्र और 1195 छात्राएं, जबकि इंटरमीडिएट के 1924 छात्र और 925 छात्राएं शामिल हैं। यह आंकड़े न केवल हैरान करते हैं बल्कि एक गहरी चिंता को जन्म भी देते हैं।

Source Courtesy – Digital Media

हिंदी में फेल, जबकि अन्य विषयों में सफलता

जब हम बाकी विषयों की तुलना करते हैं, तो हिंदी का रिज़ल्ट और भी ज्यादा चिंता पैदा करता है। हाईस्कूल में हिंदी का परिणाम 96.77% रहा, जबकि इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (98.59%), एग्रीकल्चर (98.46%), और होम साइंस (97.82%) जैसे विषयों ने हिंदी को पीछे छोड़ दिया।

इंटरमीडिएट में भी यही स्थिति रही — हिंदी में 97.20%, जबकि मनोविज्ञान (98.95%), होम साइंस (97.52%), शिक्षा शास्त्र (97.41%) जैसे विषयों ने अधिक सफलता दर दिखाई।

यह बताता है कि हिंदी जैसे मूलभूत विषय में असफलता छात्रों की पढ़ाई में लापरवाही या विषय के प्रति घटती रुचि को दर्शाती है।

Source Courtesy – Digital Media

हिंदी को गंभीरता से क्यों नहीं ले रहे छात्र?

शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि हिंदी को अब “स्कोरिंग” विषय नहीं माना जाता। छात्रों को लगता है कि यह आसान है और इसी सोच के चलते वे इसकी तैयारी में लापरवाही बरतते हैं। लेकिन तथ्य यह है कि हिंदी में पास होने के लिए न्यूनतम 33% अंक जरूरी होते हैं और इसमें ग्रेस नहीं दिया जाता, जो इसे और भी चुनौतीपूर्ण बना देता है।

Source Courtesy – Digital Media

हिंदी भाषी राज्य में हिंदी की दुर्गति?

उत्तराखंड जैसे हिंदी भाषी राज्य में, जहां हिंदी ना सिर्फ संपर्क भाषा है बल्कि प्रशासनिक भाषा भी है, वहाँ के छात्र यदि हिंदी में पिछड़ते हैं तो यह केवल एक विषय में असफलता नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और भाषाई समझ की गिरावट का संकेत है।

दक्षिण भारत में हिंदी का संघर्ष वर्षों पुराना है, लेकिन अब हिंदी बेल्ट माने जाने वाले राज्यों में भी हिंदी को लेकर अरुचि दिखना देश की भाषाई नीति, शिक्षा प्रणाली और पाठ्यक्रम की संरचना पर सवाल खड़े करता है।

क्या शिक्षा प्रणाली को खुद से सवाल नहीं करने चाहिए?

  • क्या बच्चों को हिंदी पढ़ाने के तरीके पुराने हो चुके हैं?

  • क्या तकनीकी विषयों की ओर झुकाव ने भाषाई विषयों को पीछे छोड़ दिया है?

  • क्या शिक्षकों को भी हिंदी विषय की पढ़ाई को रोचक बनाने के लिए नए तरीके अपनाने की जरूरत है?

Source Courtesy – Digital Media

अब जरूरी है भाषा की पुनः प्रतिष्ठा

हिंदी केवल एक विषय नहीं, हमारी संस्कृति, साहित्य और संवाद की आत्मा है। इसे केवल पास होने का विषय नहीं बल्कि समझने और अपनाने का माध्यम बनाना होगा। शिक्षा नीति निर्माताओं को, शिक्षकों को और सबसे अधिक अभिभावकों को यह समझने की जरूरत है कि यदि हिंदी में गिरावट जारी रही, तो आने वाली पीढ़ियों से हम उनका भाषाई और सांस्कृतिक आधार ही छीन लेंगे।  उत्तराखंड बोर्ड परीक्षा के हिंदी विषय में असफलता के ये आंकड़े केवल रिज़ल्ट नहीं, एक भाषाई संकट का संकेत हैं। अगर अभी भी इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब हिंदी अपने ही घर में पराई हो जाएगी।