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Madhya Pradesh Election: एमपी में ‘सेक्युलर’ कांग्रेस नहीं, कमलनाथ का हिंदुत्व चलेगा, प्रत्याशियों की लिस्ट और वचन पत्र ने बताई रणनीति

कांग्रेस ने मुस्सिमों की राजनीति छोड़ हिंदुत्व पर सारा फोकस जमा रखा है। इसका बड़ा क्रेडिट पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को जाएगा जिनकी तरफ से ना सिर्फ खुलकर हिंदुत्व कार्ड खेला जा रहा है, बल्कि प्रत्याशियों की लिस्ट और घोषणापत्र में भी इसकी छाप साफ देखने को मिल रही है।

मध्य प्रदेश चुनाव का सियासी बिगुल बज चुका है, 17 नवंबर को वोटिंग तो 3 दिसंबर को नतीजे भी सामने आने वाले हैं। हर बार की तरह इस बार भी राज्य में कई ऐसे मुद्दे हैं जो हावी रहने वाले हैं, लेकिन एक परिवर्तन काफी प्रबल दिख रहा है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस 2013 के बाद से मध्य प्रदेश में काफी बदल चुकी है। ये एक ऐसी पार्टी है जो खुद को सेक्युलर ना बताकर ‘हिंदूवादी’ कहलाना ज्यादा पसंद कर रही है। पिछले विधानसभा चुनाव को लेकर तो कांग्रेस खुद स्वीकार करती है कि उसने तय रणनीति के तहत हिंदुत्व की पिच पर खेलने का फैसला किया था।

अब एक बार फिर जब चुनाव नजदीक हैं, कांग्रेस ने मुस्सिमों की राजनीति छोड़ हिंदुत्व पर सारा फोकस जमा रखा है। इसका बड़ा क्रेडिट पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को जाएगा जिनकी तरफ से ना सिर्फ खुलकर हिंदुत्व कार्ड खेला जा रहा है, बल्कि प्रत्याशियों की लिस्ट और घोषणापत्र में भी इसकी छाप साफ देखने को मिल रही है। अभी तक कांग्रेस की तरफ से कुल 144 प्रत्याशी मैदान में उतारे जा चुके हैं, लेकिन वहां भी सिर्फ एक मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया गया है। पार्टी ने भोपाल सीट से आरिफ मसूद को अपना प्रत्याशी बनाया है जिन्होंने पिछली बार भी इस सीट से चुनाव जीत लिया था।

लेकिन 144 में सिर्फ एक मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट देना काफी कुछ बताता है। असल में मध्य प्रदेश में सात फीसदी के करीब मुस्लिम आबादी है, वहीं हिंदुओं की संख्या 91 प्रतिशत के करीब है। ये समीकरण ही बताने के लिए काफी है कि एमपी में पिछले कुछ सालों में कांग्रेस ने अपनी रणनीति में इतना बड़ा बदलाव क्यों कर लिया है। जानकार तो इस समय मध्य प्रदेश में कांग्रेस को सॉफ्ट हिंदुत्व नहीं बल्कि हार्ड हिंदुत्व वाली पार्टी के रूप में देख रहे हैं। इस बार पार्टी का जो वचन पत्र सामने आया है, उसमें जिस तरह से गायों पर खास फोकस दिया गया है, जिस तरह से मंदिर निर्माण का जिक्र किया गया है, ये बताता है कि एमपी में कांग्रेस ने सेक्युलर वाला चोला कहीं पीछे छोड़ दिया है।

कांग्रेस के घोषणा पत्र की बात करें तो पार्टी ने दो डिपार्टमेंट में इस बार खोस फोकस दिया है। एक तरफ गायों की पॉलिटिक्स कर हिंदुत्व को धार देने का काम हुआ है, तो वहीं इसके साथ-साथ ओबीसी राजनीति वाली पिच पर भी मजबूती से खेलने का प्रयास दिखा है। बात अगर गायों की हो तो कांग्रेस ने पूरी तरह छत्तीसगढ़ की बघेल सरकार वाले मॉडल पर चलने का फैसला किया है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि वचन पत्र में वादा कर दिया गया है कि सरकार बनने पर नंदिनी गोधन योजना शुरू की जाएगी। इस योजना के तहत राज्य सरकार दो रुपये प्रति किलो की दर से गोबर खरीदने वाली है।

अब इसे छत्तीसगढ़ मॉडल से प्रेरित इसलिए माना जा रहा है क्योंकि वहां की कांग्रेस सरकार ने ही साल 2020 में गोधन न्याय योजना की शुरुआत की थी। उस योजना के तहत 2 रुपये प्रति किलोग्राम पर गोबर खरीदा गया, बल्कि इसके साथ-साथ जैविक खेती को भी प्रोत्साहन देने का काम हुआ। अब एमपी में उसी गाय वाले दांव के जरिए पार्टी फिर सत्ता वापसी करना चाहती है। बड़ी बात ये भी है कि पार्टी द्वारा 2018 के चुनावी वादों को भी फिर दोहरा दिया गया है। उदाहरण के लिए 1000 गौशालाएं फिर शुरू करने का वादा किया गया है, गो ग्रास अनुदान बढ़ाने की बात भी कर दी गई है।

कांग्रेस के वचन पत्र में लोगों की आस्था का भी पूरा ध्यान रखा गया है। सोची-समझी रणनीति के तहत ऐसे वादे कर दिए गए हैं कि हिंदू समाज का प्रभावित होना लाजिमी लगता है। पार्टी ने लोगों की आस्था और विश्वास को ध्यान में रखते हुए कुल 18 बड़े वादे किए हैं। इस लिल्ट में राम वन गमन पथ को जल्द पूरा करने से लेकर श्रीलंका में माता सीता का मंदिर बनाने का ऐलान किया गया है। इसके अलावा कांग्रेस ने महंत-पुजारियों के लिए बीमा का वादा भी कर दिया है, चित्रकूट में निषादराज की प्रतिमा बनाने की बात भी कही गई है। अब ये ऐलान, ये वादे बताते हैं कि कांग्रेस बीजेपी की पिच पर सिर्फ खेल नहीं रही है, बल्कि इस बार उसे बैकफुट पर धकेलने की तैयारी है। पार्टी जिस रणनीति पर काम कर रही है, उसके तहत इस बार सिर्फ दिखाने वाली हिंदुत्व राजनीति पर जोर नहीं दिया जा रहा है, बल्कि पूरी तरह इस समाज को अपने पाले में लाने की कवायद दिख रही है।

इसी कड़ी में कमलनाथ खुद को कभी हनुमान भक्त बता रहे हैं तो कभी छिंदवाड़ा में धीरेंद्र शास्त्री का प्रवचन भी रख रहे हैं। जब कांग्रेस ने प्रियंका गांधी के जरिए एमपी चुनाव का सियासी बिगुल फूंका था, उस समय इस हिंदुत्व वाली राजनीति को खास तवज्जो दी गई। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि प्रियंका गांधी ने एक तय रणनीति के तहत जबलपुर से अपनी चुनावी यात्रा की शुरुआत की। उनकी तरफ से सबसे पहले नर्मदा नदी के दर्शन किए गए, वहां पर पुजारियों के साथ आरती हुई और उसके बार सियासी कार्यक्रमों में हिस्सा लेने का दौर शुरू हुआ।

ये सबकुछ कमलनाथ के दिमाग की ही रणनीति है जहां पर हर कीमत पर कांग्रेस को एमपी में एक हिंदुत्व वाली पार्टी के तौर पर स्थापित करने पर जोर दिया जा रहा है। ये अलग बात है कि राज्य में कांग्रेस के मुस्लिम नेता ही पार्टी की इस रणनीति से ज्यादा खुश नहीं है। उन्हे लगता है कि मुस्लिमों को हल्के में लेकर पार्टी एक बड़ी भूल कर रही है। कुछ नेताओं का तो यहां तक मानना है कि पार्टी का सॉफ्ट हिंदुत्व के जरिए बीजेपी को हराना खियाली पुलाव पकाने के समान है। ऐसे में जिस हिंदुत्व की राह पर पार्टी चल रही है, एमपी में उसका सियासी नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।

वैसे यहां ये समझना जरूरी है कि कांग्रेस ने साल 2014 के बाद से ही सॉफ्ट हिंदुत्व पर खेलना शुरू किया है। असल में 2014 के चुनाव में जब पार्टी ने अपनी सबसे करारी हार देखी थी, तब सोनिया गांधी ने एके एंटोनी की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था। उस कमेटी ने पार्टी की हार का एक बड़ा कारण मुस्लिम तुष्टीकरण माना था। उसके बाद से ही पार्टी रणनीति में बदलाव दिखना शुरू हुआ और समय-समय पर हिंदुत्व की पॉलिटिक्स पर भी खेलने का काम किया गया।

वैसे यहां ये समझना जरूरी है कि कांग्रेस ने साल 2014 के बाद से ही सॉफ्ट हिंदुत्व पर खेलना शुरू किया है। असल में 2014 के चुनाव में जब पार्टी ने अपनी सबसे करारी हार देखी थी, तब सोनिया गांधी ने एके एंटोनी की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था। उस कमेटी ने पार्टी की हार का एक बड़ा कारण मुस्लिम तुष्टीकरण माना था। उसके बाद से ही पार्टी रणनीति में बदलाव दिखना शुरू हुआ और समय-समय पर हिंदुत्व की पॉलिटिक्स पर भी खेलने का काम किया गया। वैसे इस बार मध्य प्रदेश में तो कांग्रेस एक अलग ही समीकरण पर काम कर रही है। वो हिंदुत्व की पिच पर खेल ही रही है, इसके साथ-साथ पहली बार जातिगत जनगणना पर भी बेबाक बोल रही है। वो ओबीसी वोटबैंक को भी अपने पाले में चाहती है और हिंदुओं को भी एकमुश्त अपने पास रखना चाहती है। कागज पर ये जीतने वाला समीकरण जरूर दिखता है, लेकिन असल परीक्षा जमीन पर शुरू होने जा रही है जिसके नतीजे तीन दिसंबर को आएंगे।