2024 के लोकसभा चुनाव: ‘मैं बाबा केदार का अनुयायी, ‘उस’ अमित शाह के विशेष’: गणेश गोदियाल
2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार के सिलसिले में दैनिक जागरण ने दोनों प्रत्याशियों से विभिन्न विषयों पर विस्तृत से चर्चा की। गढ़वाल लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी गणेश गोदियाल तराई क्षेत्रों में भी रोड शो और जनसभाओं के माध्यम से पार्टी की नीतियां और मुद्दों को दोनों प्रत्याशी जोर-शोर से रख रहे हैं। उनसे भी इस बारे में बात की गई।
उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार जोर पकड़ने लगा है। गढ़वाल लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी गणेश गोदियाल को प्रदेश की सबसे विषम भूगोल वाली इस सीट पर मतदाताओं से संपर्क करने के लिए ऊंची चोटियां नापनी पड़ रही हैं तो तराई क्षेत्रों में भी रोड शो और जनसभाओं के माध्यम से पार्टी की नीतियां और मुद्दों को दोनों प्रत्याशी जोर-शोर से रख रहे हैं। चुनाव प्रचार के सिलसिले में दैनिक जागरण ने दोनों प्रत्याशियों से विभिन्न विषयों पर विस्तृत से चर्चा की।
चुनाव मैदान में किस उद्देश्य के लिए उतरे हैं। चुनाव जीतने के बाद उद्देश्य के अनुसार काम होता है?
-व्यक्तिगत जीवन में कभी अति महत्वाकांक्षी नहीं रहा हूं। पार्टी जिसे प्रत्याशी बनाना चाहती थी, वह भाजपा में चले गए। पार्टी हाईकमान ने मुझ पर विश्वास जताया व आज मैं चुनाव मैदान में हूं। राजनीति में मेरा मुख्य उद्देश्य समाज और उत्तराखंड की सेवा करना है। चुनाव जीता तो अपने उद्देश्यों और सपनों को अवश्य पूरा करुंगा।
राजनीति में विभिन्न दायित्वों पर रहते हुए आपने क्या कार्य किए। कोई पांच काम, जो आपकी उपलब्धि हों?
-अभी तक राजनीति में एक सीमित दायरे में रहा हूं। एक विधानसभा सीट पर मुझे प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। अपनी विधानसभा क्षेत्र के राठ क्षेत्र में निजी संसाधन से डिग्री कालेज खुलवाने का काम किया। आज हजारों बेटे-बेटियां वहां उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इस क्षेत्र के निवासियों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल करवा कर बेहतर जीवन का रास्ता खोला। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति का अध्यक्ष रहते हुए भगवान बदरीनाथ के शीतकालीन पूजा स्थल के जीर्णोद्धार का काम किया। केदारनाथ में आज जो 223 किलो सोने का पीतल बनने का प्रकरण चर्चा का विषय है, उसका प्रस्ताव मेरे समय में भी आया था। मुझे भी प्रलोभन देने की कोशिश की गई। लेकिन, मैं प्रलोभन में नहीं आया।
चुनाव में प्रमुख प्रतिद्वंद्वी कौन है और उसे कितना मजबूत मानते हैं?
-मेरे प्रमुख प्रतिद्वंदी भाजपा के प्रत्याशी ही हैं। यह जगजाहिर है कि मैं बाबा केदार का चेला हूं और सबके सामने हाथ फैला रहा हूं। जबकि प्रतिद्वंद्वी अमित शाह के चेले और उनके करीबी हैं। प्रतिद्वंद्वी के धनबल से मेरा कोई मुकाबला नहीं है। वह अपनी आर्थिक शक्ति और धन-बल से जनता तक पहुंच रहे हैं जबकि, मैं अपने विचारों से जनता तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा हूं।
चुनाव जीतने के बाद आपकी प्राथमिकता क्या रहेगी? पांच प्राथमिकता बताएं?
-चुनाव जीता तो सबसे पहले सेना में भर्ती के लिए अग्निपथ योजना के पैटर्न को बदल कर पूर्व की भांति नियमित भर्ती खोलने के प्रयास किए जाएंगे। प्रदेश में बेरोजगारी की दर 80 प्रतिशत तक पहुंच गई है। युवाओं को एक साल का प्रशिक्षण देकर उन्हें स्थायी रोजगार से जोड़ेंगे। वनंतरा प्रकरण में कथित वीआइपी को सजा दिलाने का काम करुंगा। चारधाम यात्रा के माध्यम से अधिक व्यक्तियों को राेजगार से जोड़ने और केदारनाथ में घोड़ा-खच्चरों के लिए अलग ट्रैक बनाने को प्राथमिकता दी जाएगी।
उत्तराखंड आदर्श राज्य कैसे बन सकता है और राज्य की बड़ी चुनौतियां क्या मानते हैं?
– प्रचुर मात्रा में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग कर उत्तराखंड को संवारा जा सकता है। उत्पादन ही रोजगार की जननी है। यहां संसाधनों की कोई कमी नहीं है। हम जल संपदा से ही हजारों रोजगार सृजित कर सकते हैं। इसी तरह अन्य संसाधनों को भी रोजगार से जोड़ने की जरूरत है। अभी तक सरकारों ने इस दिशा में कोई काम नहीं किए।
जिस संसदीय सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, उसके विकास से कितने संतुष्ट हैं?
-विकास के नाम पर इस संसदीय क्षेत्र को ही नहीं बल्कि पूरे उत्तराखंड को भाजपा की सरकार ने ठगने का काम किया है। मैं इस तरह के विकास से कतई संतुष्ट नहीं हूं। विकास रोजगारपरक व नियोजित होना चाहिए।
पलायन हमेशा बड़ा मुद्दा रहा है। पलायन रोकने के संबंध में आपकी क्या योजना है?
-पलायन का सबसे बड़ा कारण रोजगार की कमी ही है। मैं पहले ही कह चुका हूं कि उत्तराखंड में रोजगार बढ़ाने के लिए यहां के संसाधनों का सही उपयोग करना होगा। यदि पहाड़ के युवाओं को पहाड़ में ही काम मिल जाएगा तो पलायन की समस्या स्वत: ही खत्म हो जाएगी। मेरी योजना यही रहेगी कि युवाओं को पहाड़ में ही उचित रोजगार दिया जाए।
पर्वतीय क्षेत्रों में जंगली जानवरों का आतंक बढ़ रहा है?
-पर्वतीय क्षेत्रों में जंगली जानवरों का आतंक हमेशा से ही बना रहा। अब पलायन के कारण खेती-बाड़ी भी कम हो गई है। सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि इसके लिए प्रभावी कदम उठाए। वन कानून ऐसे हों, जिनमें स्थानीय नागरिकों के हक-हकूक प्रभावित न हो। कंडी रोड को लेकर हमारी सरकार ने पूरे प्रयास किए, जिसके फलस्वरूप यह रोड स्वीकृत भी हुई। मगर, भाजपा की सरकार आते ही इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। हमारा प्रयास रहेगा कि इस मार्ग के निर्माण को प्राथमिकता के आधार पर शुरू कराया जाए।